जब टाईटेनिक जहाज समुद्र में डूब रहा था तो उसके आसपास तीन ऐसे जहाज़ मौजूद थे जो टाईटेनिक के मुसाफिरों को बचा सकते थे.
सबसे करीब जो जहाज़ मौजूद था उसका नाम था सैमसन, और वो हादसे के समय टाईटेनिक से सिर्फ सात मील की दूरी पर था.
पहला जहाज़
सैमसन के कैप्टन ने न सिर्फ टाईटेनिक की ओर से फायर किए गए सफेद शोले(जो कि बेहद खतरे की हालत में हवा में फायर किये जाते हैं) देखे थे, बल्कि टाईटेनिक के मुसाफिरों के चिल्लाने के आवाज़ को भी सुना भी था.
लेकिन सैमसन के लोग ग़ैरकानूनी तौर पर बेशक़ीमती समुद्री जीवों का शिकार कर रहे थे और नहीं चाहते थे कि पकड़े जाएँ. वे अपने जहाज़ को दूसरी तरफ़ मोड़ कर चले गए.
यह जहाज़ हम में से उन लोगों की तरह है जो अपनी गुनाहों भरी ज़िन्दगी में इतने मग़न हो जाते हैं कि उनके अंदर से इन्सानियत ख़त्म हो जाती है.
दूसरा जहाज़
जो करीब मौजूद था उसका नाम था कैलीफोर्नियन, जो हादसे के समय टाईटेनिक से चौदह मील दूर था.
उस जहाज़ के कैप्टन ने भी टाईटेनिक की ओर से निकल रहे सफेद शोले अपनी आँखों से देखे.
क्योंकि टाईटेनिक उस वक्त बर्फ़ की चट्टानों से घिरा हुआ था और उसे उन चट्टानों के चक्कर काट कर जाना पड़ता, इसलिए वो कैप्टन सुबह होने का इन्तजार करने लगा.
जब सुबह वो टाईटेनिक की लोकेशन पर पहुँचा तो टाईटेनिक को समुद्र की तह में पहुँचे हुए चार घंटे बीत चुके थे और टाईटेनिक के कैप्टन एडवर्ड स्मिथ समेत उसमें सवार 1569 यात्री डूब चुके थे.
यह जहाज़ हम लोगों में से उनकी तरह है, जो किसी की मदद करने के लिए अपनी सहूलियत और आसानी देखते हैं, और अगर हालात सही न हों तो अपना फ़र्ज़ भूल जाते हैं.
तीसरा जहाज़
कारपेथिया, जो टाईटेनिक से 68 मील दूर था, उस जहाज़ के कैप्टन ने रेडियो पर टाईटेनिक के मुसाफ़िरों की चीख पुकार सुनी, जबकि उसका जहाज़ दूसरी तरफ़ जा रहा था. उसने तत्काल अपने जहाज़ का रुख मोड़ा और बर्फ़ की चट्टानों और खतरनाक़ मौसम की परवाह किए बगैर मदद के लिए रवाना हो गया.
हालाँकि वो दूर होने की वजह से टाईटेनिक के डूबने के दो घण्टे बाद लोकेशन पर पहुँच सका, लेकिन यही वो जहाज़ था, जिसने लाइफ बोट्स की मदद से टाईटेनिक के बाकी 710 मुसाफ़िरों को ज़िन्दा बचाया था और उन्हें हिफाज़त के साथ न्यूयार्क पहुँचा दिया था.
उस जहाज़ के कैप्टन “आर्थर रोसट्रन” को ब्रिटेन की तारीख के चंद बहादुर कैप्टनों में शुमार किया जाता है, और उनको कई सामाजिक और सरकारी अवार्ड्स से भी नवाजा गया था.
हमारी ज़िन्दगी में हमेशा मुश्किलें रहती हैं, चुनौतियाँ रहती हैं, लेकिन जो इन मुश्किल और चुनौतियों का सामना करते हुए भी इन्सानियत की भलाई के लिए कुछ कर जाए वही सच्चा इन्सान है.
आज के माहौल में जिस किसी ने भी अपनी सामर्थ्य अनुसार किसी की सहायता की है, समझिए विश्व रूपी टाइटैनिक के डूबने से पहले उसने ज़िन्दगियाँ बचाने का पुण्य प्राप्त किया है.
अभी संकट दूर नहीं हुआ है, अभी भी बहुत कुछ किया जा सकता है.
आइए
मिलजुल कर
इस मुश्किल घड़ी में
एक दूसरे की सहायता करें.
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